Sunday 15 January 2017

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ - Ranjish Hi sahi Dil Ko..

#PyasaMann


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रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ

आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

पहले से मरासिम* न सही, फिर भी कभी तो
रस्मों-रहे* दुनिया ही निभाने के लिए आ
(मरासिम – प्रेम-व्यहवार, रस्मों-रहे – सामाजिक शिष्टता)
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है, तो ज़माने के लिए आ

कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत* का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ
(पिन्दार-ए-मोहब्बत – मोहब्बत का गर्व)
इक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिरिया* से भी महरूम*
ऐ राहत-ए-जाँ* मुझको रुलाने के लिए आ
(लज़्ज़त-ए-गिरिया – रोने का स्वाद, महरूम – वंचित होना, राहत-ए-जाँ – जीने का जीने का आधार)
अब तक दिल-ए-ख़ुशफ़हम* को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आखिरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ
(दिल-ए-ख़ुशफ़हम – किसी की ओर से अच्छा सोचने वाला मन)
माना की मुहब्बत का छिपाना है मुहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ

जैसे तुझे आते हैं न आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ
-Ahmad Faraz
-अहमद फ़राज़